रविवार, 24 अक्तूबर 2010

शोध दिशा का प्रवासी कथा विशेषांक


अपने देश से दूर हिंदी की सेवा में लगे बहुत से कवि और कथाकार अपनी लेखनी का प्रकाश भारत के कोने-कोने में नहीं फैला पाते हैं। अतः इनके साहित्य को एकत्र कर के समय-समय पर विभिन्न पत्रिकाएं प्रवासी विशेषांक निकालती रहती हैं। इस दिशा में पहला कदम उठाया था "वर्तमान साहित्य" ने, प्रवासी महाविशेषांक निकाल कर। 2006 में प्रकाशित इस अंक के अतिथि सम्पादक थे डॉ. असगर वजाहत। अपने आप में यह विशेषांक इसलिए भी विशिष्ट था कि इसमें कई देशों के रचनाकारों के विभिन्न विधाओं में किए गए लेखन को न मात्र पहली बार एक मंच पर प्रस्तुत किया गया था वरन उस लेखन की समीक्षा भी उपलब्ध थी। इसके बाद "रचना समय" पत्रिका का प्रवासी कथा विशेषांक तेजेंद्र शर्मा के अतिथि सम्पादकत्व में आया। इस दिशा में नवीनतम प्रस्तुति है साहित्य अकादमी के लिए हिमांशु जोशी के द्वारा 2009 में निकाला गया प्रवासी कहानियों का संकलन।

अमेरिका के साहित्य को समेटने का काम पिछले कुछ वर्षों से अंजना संधीर निरंतर करती रही हैं और उनकी शोधपरक प्रस्तुतियां "प्रवासी आवाज", "प्रवासिनी के बोल", "सात समन्दर पार से" आदि के रूप में सामने आती रही हैं ।

इसी दिशा में एक नया कदम है "शोध दिशा" पत्रिका का प्रवासी कथा विशेषांक। यह पहला ऐसा विशेषांक है जो अमेरिका के प्रतिनिधि हिंदी कथाकारों पर केन्द्रित है। इस में 21 कथाकारों की प्रतिनिधि कहानियों को संग्रहीत किया गया है जो दो अंको में कालक्रम से पाठकों के समक्ष आएगा।
पहला भाग जो अभी आया है जुलाई-सितम्बर 2010 अंक, उसमें 10 कहानियों का संग्रह है और अन्य 11 कहानियां अगले अंक में आएंगी। अमरीका की पहली हिंदी कथाकार सोमा वीरा की कहानी से लेकर, उषा प्रियंवदा, सुषम बेदी, कमला दत्त, रमेशचन्द्र धुस्सा, उमेश अग्निहोत्री, उषा कोल्हटकर, अनिल प्रभा कुमार, सुदर्शन प्रियदर्शिनी, एवं सुधा धींगरा की कहानियों से सजा यह अंक पाठकों को लुभाएगा।

आकर्षक मुख पृष्ठ, संपादकों के संतुलित वक्तव्य और कहानियों का सुरुचिपूर्ण चुनाव इस पत्रिका को आद्योपांत पठनीय बनाता है जिसके लिए शोध दिशा के सम्पादक गिरिराज शरण अग्रवाल, प्रबंध संपादिका मीना अग्रवाल और इस अंक की अतिथि सम्पादिका इला प्रसाद बधाई की पात्र हैं। इस पत्रिका में भाषा की गलतियां नगण्य हैं। गिरिराज शरण जी का यह प्रयास बहुत सराहनीय और स्वागत योग्य है। शोध दिशा के इस अंक में जिन कहानियों को चुना गया है उन में से कुछ तो यहां (अमेरिका ) के परिवेश को दर्शाती हैं तो कुछ में देश की महक मिलती है। भाषा और पटकथा की दृष्टि से हर कहानी बहुत मजबूत है। इस खजाने को एकत्र करने में इला जी ने जो मेहनत की है वो काबिले तारीफ है। मीना अग्रवाल जी का संस्मरण "यादों के झरोखे में काका " अति पठनीय है।
इस पत्रिका के माध्यम से अमेरिका की हिंदी कहानी का जो स्वरूप सामने आया है वो आलोचकों को पुनर्विचार पर मजबूर करेगा।
रचना श्रीवास्तव

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